आज के आर्टिकल में हम ये जानेंगे कि Antivirus Kya Hai और कैसे काम करता है और क्यों जरूरी होता है. साथ ही साथ इसके advantage के बारे में भी चर्चा करेंगे.
तो यदि आप एक कंप्यूटर या mobile user है तो अपने जरुर वायरस का नाम सुना होगा और इसी वायरस को दूर करने के लिए हम अनेको Antivirus का इस्तेमाल करते है तो but सही तरीके से decision नही ले पाते कि कौन सा हमारे कंप्यूटर या mobile के लिए Antivirus सही है.
इसीलिए कंप्यूटर सिस्टम को वायरस से सुरक्षित रखना ही हमारा पहला काम है. कंप्यूटर को कैसे सुरक्षित रखा जाये यही दुविधा आज apki दूर होने वाली है क्योंकि इस आर्टिकल के अंदर हम डिटेल्स में Antivirus के बारे में चर्चा करेंगे.
जैसा कि आजकल इन्टरनेट का बेहद मात्रा में उपयोग हो रहा है और आपको वायरस के बचने के लिए एंटीवायरस डाउनलोड करने की सलाह भी दी जाती है. but ऐसा होता क्यों है. कि आपके कंप्यूटर में एक अच्छा Antivirus सॉफ्टवेयर इनस्टॉल होना चाहिए.
तो दोस्तों, Antivirus का कंप्यूटर में होना बहुत ही जरूरी है और इसकी उपयोगिता उस समय बहुत ज्यादा होती है जब आपका कंप्यूटर kisi नेटवर्क या इन्टरनेट से जुड़ा हो.
Antivirus वह सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम होता है जो कंप्यूटर में छुपे वायरस को डिलीट करने का काम करता है. Antivirus को एंटी-मैलवेयर के नाम से भी जाना जाता है.
एक एंटीवायरस कंप्यूटर के लिए safeguard के जैसे कार्य करता है और कंप्यूटर worms, trojan, adware इत्यादि को कंप्यूटर से remove करता है.
एक कंप्यूटर में एंटीवायरस का इनस्टॉल होना बेहद ही जरूरी है. और इसके लिए Antivirus सॉफ्टवेयर कंपनिया टाइम to टाइम अपने programs को अपडेट करती रहती है. यदि आपके कंप्यूटर में एंटीवायरस नही है और आप इन्टरनेट का बेहद प्रयोग कर रहे है तो आपका कंप्यूटर कुछ ही मिनटों में संक्रमित भी हो सकता है.
सबसे पहले कंप्यूटर वायरस का जन्म 70 वर्ष पहले हुआ जिसे criper वायरस के नाम से जाना गया. उस टाइम की बात की जाये तो mainframe computer ही ज्यादा प्रचलित थे और यह वायरस उन computers को ही संक्रमित करता था.
इस वायरस को नष्ट करने के लिए रे tomlinson ने एक प्रोग्राम बनाया जिसे ‘the riper’ के नाम भी जाना जाता था. criper वायरस के आने के बाद और भी अनेक वायरस का जन्म हुआ.
वर्ष 1981 में elk cloner नामक एक वायरस पैदा हुआ जिसने apple कंपनी के दूसरी series के कंप्यूटर पर वायरस के द्वारा हमला किया.
वर्ष 1987 में “एंड्रियास ल्युनिंग” तथा “काई फेज़” नामक व्यक्ति द्वारा पहला Antivirus launch किया गया. उसी वर्ष McAfee कंपनी द्वारा भी वायरस scan नामक एंटीवायरस का पहला version आया.
1990 में कंप्यूटर Antivirus अनुसंधान संगठन (CARO) की स्थापना की गई. 1992 में AVG टेक्नोलॉजी का विकास किया गया. तथा इसी वर्ष प्रचलित AVG Antivirus का पहला संस्करण लॉन्च किया गया.
इस प्रकार समय के साथ साथ अलग अलग कंपनियों द्वारा एंटीवायरस प्रोग्राम के निर्माण की ओर ध्यान दिया गया.
जिस कंप्यूटर पर Antivirus इनस्टॉल नही है और यदि वो इन्टरनेट से connected है तो उसका कंप्यूटर कुछ ही मिनटों में affected हो सकता है.
but ज्यादातर user को लगता है कि उनका PC इन्टरनेट से तो connect नही है इसीलिए हमे एंटीवायरस की जरूरत नही है. but एंटीवायरस के बिना यदि आप कोई affected usb pen drive या removable drive अपने कंप्यूटर में enter करते है तो उनका कंप्यूटर तुरंत वायरस से infected हो जाता है.
आजकल तो smartphone या tablet पर भी वायरस की बरमार है जो device को नुकसान पहुंचाते है. इसलिए इन सबको दूर करने के लिए ही एंटीवायरस की आवश्कता पढ़ती है.
जैसा कि हमारे कंप्यूटर में बहुत मात्रा में डाटा होता है और ऐसे में वायरस को find करना बढ़ा मुश्किल काम है. तो चलिए अब जानते है कि कौन कौन से तरीको से Antivirus के द्वारा वायरस का पता लगाया जा सकता है.
इस technique से पुरे प्रोग्राम को scan किया जाता है ये method सबसे पुराना है कंप्यूटर में से वायरस निकालने का. इस technique से कंप्यूटर में जितनी भी .exe files है उन सभी को virus detection files के साथ match किया जाता है. इसमें जब भी कोई unknown फाइल को पहचाना जाता है तो उसके ऊपर action लिया जाता है.
इस technique को डिटेक्शन technique और signature based डिटेक्शन को मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है. आजकल के सभी एंटीवायरस इस technique का प्रयोग करते है क्योंकि इस टेक्नोलॉजी के help से बढे easily तरीके से नए और पुराने वायरस को find करके निकाला जा सकता है.
इस technique की सबसे बड़ी बात ये है कि ये मैलवेयर के behavior को डिटेक्ट करता है. और मैलवेयर को तबी डिटेक्ट करता है जब दुसरे files को corrupt करने की कोशिश की जाती है.
sandbox detection ज्यादातर behavioral based detection mechanism पर work करता है. इस mechanism के द्वारा प्रोग्राम के behavior को identify किया जाता है. यदि एंटीवायरस को ये पता चलता है कि प्रोग्राम malicious है तो उसपर action लिया जाता है.
इस technique के programs में कुछ खास features होते है और डाटा mining technique एक लेटेस्ट trend टेक्नोलॉजी है. इस technique से प्रोग्राम malicious है या नही इसका पता लगाया जाता है.
Background स्कैनिंग का मतलब ही यह है कि ये आपके सिस्टम में background files को भी scan करता है और जब भी आप files, एप्लीकेशन या ऑनलाइन कुछ डाउनलोड करते है तो ये आपके सभी files को scan करता है. यह करने से आपके कंप्यूटर को Real Time Protection मिलता है. और यही बजह है कि कोई भी मैलवेयर आपके सिस्टम पर attack नही कर सकते.
जब सिस्टम को पूरी तरह अपडेट कर लिया जाता है तो full scanning उस टाइम ज्यादा फायदेमंद रहती है. फुल scan करने से यह सुनिश्चित कर लिया जाता है कि कंप्यूटर में पहले से वायरस है या नही.
जब आप पहली बार अपने कंप्यूटर सिस्टम में एंटीवायरस इनस्टॉल करते है तो आपको फुल scan करने की आवश्कता होती है.
अपने सिस्टम में एंटीवायरस का होना अति जरूरी है ताकि जो भी आजकल नए वायरस आ रहे है उनसे हमारा सिस्टम safe रहे.
Antivirus software या तो free होता है या फिर paid. इसमें कुछ basic difference है
यदि आप एंटीवायरस का free version प्रयोग कर रहे हो तो उसके आप सिर्फ basic features ही प्रयोग कर सकते है लेकिन यदि आप किसी एंटीवायरस का paid version प्रयोग कर रहे है तो आपके device के लिए अधिक security मिलती है.
free एंटीवायरस में आपको टेक्निकल सपोर्ट नही मिलता जबकि paid में आपको फुल सपोर्ट मिलता है |
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Conclusion
इस पोस्ट में आपने सिखा What is Antivirus in Hindi or उसके types. दोस्तों यदि आपको इस पोस्ट से related कोई doubt है तो प्लीज comment करके बताये और हम कोशिश करेंगे अपने comment का reply करने की.
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